Saturday, July 18, 2015

वक़्त तेरी शाख पर

वक़्त तेरी शाख पर
पत्ते तो कई है
रंग सबके अनेक
कोई बेढंगा कोई बेमेल
कोई सुन्दर सुडोल
दुनिया में लोग भी अनेक
सबकी अपनी ख्वाइश
अपने ही सपने
किसी को चैहिये
सुख का सागर
तो कोई दुःख के भवर
में ही चाहता है रहना
पर तेरी भी अजीब रीत है।
जिसे जो चाहिए वो
उसके नसीब में आता नही
जो चाहे कोई
तोडना पत्ते सुख के
तेरी डॉल से
तो उसे मिलता नहीं
कोई यू ही बैठा
रहे तो कहो
सबसे सुन्दर पत्ता
तेरी शाख खुद ही
उसकी झोली में
गिरा दे
क्या नियम है तेरा
दशक बीत गए
लगता है अब सादिया बीत जाएँगी
पर तेरा ये नियम
न समझ आएगा। .
क्यों हर किसी को
तेरे आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है
तेरे दर पे घुटने टेकने
पढ़ते है। .
हां मै जानता हूँ
उसे भी जो तेरे
आगे नहीं टेकता घुटने
जिसके आगे तू
खड़ा रहता है
हाथ बांधे
मै भगवान की
नहीं करता बात
उस इंसान की
बात है जिसने
झुका रखा है
तुझे अपने आगे। ।
मै जानता हूँ
उसे हां मै जानता हूँ
बस सोचता हूँ
की फ़ायदा क्या
अगर उसने तुझे
झुका भी दिया तो। ।

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