Tuesday, November 29, 2022

पिता बस पिता ही नहीं होता

कभी कभी जज्बातों की आंधी इतनी तेज होती है कि जिंदगी के पन्ने उड़ जाते हैं... लिखने की कुछ कोशिश तो करता हूं पर आंसुओं से इबारत बिगड़ सी जाति है... हर बार कुछ लिखना चाहता हूं पिता पे बस याद धुंधला सी जाती है.... स्वास्थ्य बहुत है गफलाते बहुत है पर जब लिखने बैठा हूँ तो उनके आंखों की खामोशी सी सामने आ जाती है टूटा तो बहुत हूं रूठा तो बहुत हूं पर हर बार जब भी उनकी याद आती है आंख मेरी नाम सी हो जाती है... लोगो ने बहुत लिखा माँ पर पिता अछूता सा रह गया अब भी जब गुस्साता हूँ कोई उलाहना सा देता हूँ अक्सर कहते है ये दुनिया जगल सी है ये प्यार से नहीं चलती यहाँ लड़ना पड़ता है कर्तव्यों की आग में हर दम जलना पड़ता है उम्र के इस पड़ाव पर अब तो अक्सर वो कहते है अब तुम भी एक बाप हूँ समझ जाओगे पिता सिर्फ पिता ही नहीं होता जीवन को आधार देने वाला कुम्हार होता है जिसकी थपकी तुम्हे मजबूत बनाती है संघर्षो से लड़ने के लिए पिता बस पिता ही नहीं होता माँ जिस मंदिर की मूरत है पिता उस मंदिर की नीव का पथर होता है पिता बस पिता ही नहीं होता

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